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जसम का 14वां राष्ट्रीय सम्मेलन - एक संक्षिप्त रिपोर्ट

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‘‘ हमारे समाज और अर्थव्यवस्था में भारी विरोधाभास है। सरकार कहती है कि दुनिया की तेज अर्थव्यवस्था में हमारे देश की गिनती आ गई है , लेकिन तथ्य यह है कि हमारे देश में असमानता बेतहाशा बढ़ी है। सन् 1991 से हमारे देश में बाजारीकरण बढ़ा है। दुनिया के खरबपतियों में चौथा नंबर भारत का है , पर इस देश के 40 करोड़ के करीब लोग गरीब हैं , देश की बहुसंख्यक आबादी हाशिये पर है। शिक्षा , स्वास्थ्य , पर्यावरण सबकी हालत बदतर है। ’’ हिंदी भवन , नई दिल्ली में 31 जुलाई 2015 को जन संस्कृति मंच के चौदहवें राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रो. अरुण कुमार ने यह कहा। प्रो. अरुण कुमार ने कहा कि हम सिर्फ पश्चिम की बौद्धिकता और आधुनिकता की नकल करते रहे। हमने अपनी समस्या को अपने ढंग से समझने और हल निकालने की कोशिश नहीं की। हालत यह हुई कि हाशिये के लोग और हाशिये पर चले गए। उन्होंने कहा कि 1991 के बाद अर्थव्यवस्था में जो बदलाव हुआ उसके बाद बाजारीकरण का सिद्धांत हर संस्था पर हावी हो चुका है। पहले व्यक्ति की जिम्मेवारी समाज और राज्य पर थी , पर बाजार का फलसफा यह है कि व्यक्ति अपनी समस्याओं को खुद हल करे