कविता : बाबा की नौटंकी
योगा और दवाई वाले बाबा अपने एक बुला-बुला कर दिखा रहे थे देख तमाशा देख टी वी को मुंह चिढ़ा रहा था हंस कर बाराबंकी देश बिचारा देख रहा था बाबा की नौटंकी बाबा के सरे अनुयायी मिल कर आये दिल्ली सरकारी भडुए सब उनकी रहे उड़ाते खिल्ली देर रात, सरकारी हमला हुआ, पिट गयी जनता बाबा को भागना पड़ा ऐसे ज्यों भीगी बिल्ली