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श्रमजीवी मुस्लिम लोकजीवन की सहजता से साक्षात्कार कराते लोकगीत (पुस्तक चर्चा)

कबीर ने कहा था – ‘ लोका मति के भोरा रे। ’ डॉ. सबीह अफरोज़ अली द्वारा संकलित-सम्पादित मुस्लिम लोकगीतों को पढ़ते हुए बार-बार कबीर की यह बात दिमाग में गूँजती है। इस किताब का तकरीबन हर लोकगीत हमें पूर्वी उत्तर प्रदेश (अधिकांशत: आज़मगढ़ और आसपास) के उस मुलिम समाज से रू-ब-रू कराता है जो अपनी जीवन-शैली में सहज , निष्कपट और बेहद आम है – मूलत: श्रमजीवी। गाँव में है तो खेती-किसानी और शहर-नगर में है तो मज़दूरी में संलग्न इस लोक के सपने , अभिलाषाएं ज़रा से सुख , ज़रा से चैन और जीवन में ज़रा से रस के लिए तड़पते हैं। इस्लाम धर्म का अनुयायी यह समाज अरब का कोई कबीला नहीं है और न ही उसके सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन को भारत के किसी भी अन्य धर्मावलम्बी समाज से अलग करके देखा-समझा जा सकता है। उसके सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में सिर्फ इस्लाम की ही परम्पराएं और मान्यताएं नहीं हैं बल्कि वह देश में मौजूद रहे सभी सांस्कृतिक तत्वों और परम्पराओं का संवाहक है। यह संग्रह इस बात की भी तस्दीक करता है कि मुस्लिम लोक धर्म-प्रचार की संकार्णता से कहीं ऊपर है और मुस्लिम लोकगीतों की रचना का प्रयोजन इस्लाम का प्रचार करना नहीं है। क

जसम का 14वां राष्ट्रीय सम्मेलन - एक संक्षिप्त रिपोर्ट

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‘‘ हमारे समाज और अर्थव्यवस्था में भारी विरोधाभास है। सरकार कहती है कि दुनिया की तेज अर्थव्यवस्था में हमारे देश की गिनती आ गई है , लेकिन तथ्य यह है कि हमारे देश में असमानता बेतहाशा बढ़ी है। सन् 1991 से हमारे देश में बाजारीकरण बढ़ा है। दुनिया के खरबपतियों में चौथा नंबर भारत का है , पर इस देश के 40 करोड़ के करीब लोग गरीब हैं , देश की बहुसंख्यक आबादी हाशिये पर है। शिक्षा , स्वास्थ्य , पर्यावरण सबकी हालत बदतर है। ’’ हिंदी भवन , नई दिल्ली में 31 जुलाई 2015 को जन संस्कृति मंच के चौदहवें राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रो. अरुण कुमार ने यह कहा। प्रो. अरुण कुमार ने कहा कि हम सिर्फ पश्चिम की बौद्धिकता और आधुनिकता की नकल करते रहे। हमने अपनी समस्या को अपने ढंग से समझने और हल निकालने की कोशिश नहीं की। हालत यह हुई कि हाशिये के लोग और हाशिये पर चले गए। उन्होंने कहा कि 1991 के बाद अर्थव्यवस्था में जो बदलाव हुआ उसके बाद बाजारीकरण का सिद्धांत हर संस्था पर हावी हो चुका है। पहले व्यक्ति की जिम्मेवारी समाज और राज्य पर थी , पर बाजार का फलसफा यह है कि व्यक्ति अपनी समस्याओं को खुद हल करे