Posts

Showing posts from November, 2013
कुछ बातें .... जिन पर कुछ करने की जरूरत है एक 20 अक्टूबर 2013 को दूसरे आजमगढ़ फिल्मोत्सव में स्वतंत्र फिल्मकार नकुल साहनी द्वारा कुछ वीडियो क्लिपिंग्स प्रदर्शित की गयीं। ‘ मुजफ्फरनगर टेस्टीमोनियल्स ’ नाम से बनी इन वीडियो क्लिपिंग्स (न्यूज़ वीडियो) में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के लोनी कस्बे के एक मुस्लिम राहत शिविर में मौजूद लोगों के साथ बातचीत को दिखाया गया है। आज़मगढ़ के नेहरू हाल में मौजूद सैकड़ों लोगों ने इन्हें देखा। बातचीत को देखना और सुनना एक पीड़ादायी अनुभव रहा , लेकिन ताज्जुब की बात ये रही कि इस प्रदर्शन के बाद आयोजित खुली चर्चा के दौरान एक दर्शक ने नकुल साहनी पर एकतरफा सच दिखाने का आरोप लगाया। बेचारे नकुल साहनी क्या कहते , हम सब ऐसे आरोपों के सामने बेबस ही रह जाते हैं। दो मेरी चार साल की बेटी परी बड़ी गम्भीरता के साथ सोचते-सोचते कहती है - पापा , मेरी समझ में नहीं आता कि ये लड़के इतनी शैतानी क्यों करते हैं। मैं तो बिल्कुल शैतानी नहीं करती। और भी लड़कियों के नाम गिनाती है – साची , तूली , भव्या , ध्याना , दीप्ति , सानवी ..... कोई भी लड़की इतना नहीं चिल्लाती
जनता के संघर्ष और प्रतिरोध की पहचान जरूरी है : अशोक भौमिक [दूसरा आजमगढ़ फिल्मोत्सव : 18 - 20 अक्तूबर, 2013 की रिपोर्ट]    जन संस्कृति मंच के सिनेमा समूह ‘ द ग्रुप ’ तथा आजमगढ़ फिल्म सोसाइटी ने ‘ प्रतिरोध का सिनेमा ’ अभियान के 33वें आयोजन के रूप में 18 , 19 और 20 अक्टूबर को नेहरू हाल , आजमगढ़ में ‘ दूसरा आजमगढ़ फिल्मोत्सव ’ आयोजित किया। इस वर्ष यह फिल्मोत्सव हिंदी सिनेमा के महान कलाकार बलराज साहनी की स्मृति और पुणे के प्रगतिशील सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की शहादत को समर्पित था। उद्घाटन सत्र में ‘ प्रतिरोध की संस्कृति और भारतीय चित्रकला ’ विषय पर बोलते हुए प्रसिद्ध चित्रकार और जसम के संस्थापक सदस्य अशोक भौमिक ने कहा कि समकालीन कला माध्यमों में जनता के संघर्ष और प्रतिरोध की पहचान जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज की चित्रकला और जनता के बीच सम्बन्ध बहुत कमजोर हो गया है , इसलिए समकालीन चित्रकारों का एक वर्ग जनता के संघर्ष और प्रतिरोध की पहचान नहीं कर पा रहा है। उन्होंने प्रगतिशील भारतीय चित्रकारों चित्त प्रसाद , जैनुल आबेदीन , सोमनाथ होर द्वारा बंगाल के अकाल , तेभागा व