जनता के संघर्ष और प्रतिरोध की पहचान जरूरी है : अशोक भौमिक
[दूसरा आजमगढ़ फिल्मोत्सव : 18 - 20 अक्तूबर, 2013 की रिपोर्ट]   
जन संस्कृति मंच के सिनेमा समूह द ग्रुप तथा आजमगढ़ फिल्म सोसाइटी ने प्रतिरोध का सिनेमाअभियान के 33वें आयोजन के रूप में 18, 19 और 20 अक्टूबर को नेहरू हाल, आजमगढ़ में दूसरा आजमगढ़ फिल्मोत्सव आयोजित किया। इस वर्ष यह फिल्मोत्सव हिंदी सिनेमा के महान कलाकार बलराज साहनी की स्मृति और पुणे के प्रगतिशील सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की शहादत को समर्पित था।
उद्घाटन सत्र में प्रतिरोध की संस्कृति और भारतीय चित्रकलाविषय पर बोलते हुए प्रसिद्ध चित्रकार और जसम के संस्थापक सदस्य अशोक भौमिक ने कहा कि समकालीन कला माध्यमों में जनता के संघर्ष और प्रतिरोध की पहचान जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज की चित्रकला और जनता के बीच सम्बन्ध बहुत कमजोर हो गया है, इसलिए समकालीन चित्रकारों का एक वर्ग जनता के संघर्ष और प्रतिरोध की पहचान नहीं कर पा रहा है। उन्होंने प्रगतिशील भारतीय चित्रकारों चित्त प्रसाद, जैनुल आबेदीन, सोमनाथ होर द्वारा बंगाल के अकाल, तेभागा व तेलंगाना आन्दोलन और बांग्लादेश की आजादी के संघर्ष पर बनाये चित्रों के माध्यम से भारतीय चित्रकला में प्रतिरोध की संस्कृति की विवेचना की। उन्होंने कहा कि चित्त प्रसाद,सोमनाथ होर, जैनुल आबेदीन, कमरुल हसन आदि चित्रकार न सिर्फ जनता और उसके आन्दोलन से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे बल्कि उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता भी जनता के साथ थी। उन्होंने यह भी कहा कि आज की चित्रकला को पूँजीपति वर्ग ने हाइजैक कर लिया है जिसका आम आदमी के संघर्षों से कोई वास्ता नहीं है लेकिन इस जटिल समय में भी कुछ चित्रकार बाजार की ताकत के खिलाफ संघर्ष करते हुए गरीब जनता के पक्ष में चित्र बना रहे हैं, जिन्हें सामने लाना जरूरी है।
अशोक भौमिक के व्याख्यान के बाद नरेंद्र दाभोलकर की शहादत को याद करते हुए स्टीफेन हॉकिंग द्वारा प्रस्तुत टी.वी. कार्यक्रम क्यूरियोसिटी : डिड गॉड क्रिएट द यूनिवर्स का प्रदर्शन किया गया। इसके बाद बलराज साहनी की कालजयी फिल्म गरम हवा दिखाई गयी। इस मौके पर जसम के महासचिव प्रणय कृष्ण, द ग्रुप के संयोजक संजय जोशी, समकालीन जनमत की मीना राय, गोरखपुर फिल्म सोसाइटी के मनोज सिंह और आजमगढ़ फिल्म सोसाइटी के विजय बहादुर राय, डॉ. विनय सिंह यादव, जय प्रकाश नारायण, दुर्गा प्रसाद सिंह समेत बड़ी संख्या में फिल्मप्रेमी और देश के विभिन्न हिस्सों से आए फिल्मकार तथा संस्कृतिकर्मी मौजूद रहे।
तीन दिवसीय आज़मगढ़ फिल्मोत्सव के दूसरे दिन की शुरुआत लघु फिल्मों के जरिए विश्व सिनेमा की एक झलक पेश करने के साथ हुई जिसके अंतर्गत लघु फिल्म प्रिंटेड रेनबो का प्रदर्शन किया गया। इसके बाद सुरभि शर्मा की डॉक्यूमेंट्री फिल्म बिदेसिया इन बम्बई दिखायी गयी। इस दिन मध्यांतर के बाद के सभी सत्र भीड़ भरे रहे और आयोजन स्थल नेहरू हाल लगभग पूरा भरा रहा। लंच ब्रेक के तुरंत बाद प्रदर्शित न्यूज़ वीडियो मुजफ्फरनगर टेस्टीमोनियल्स ने न केवल तथाकथित मुख्यधारा की पत्रकारिता की कलई खोलकर रख दी बल्कि इसके निर्माता नकुल साहनी की सच कहने और सच दिखाने की प्रतिबद्धता ने पूँजी और पितृसत्ता की गोद में खेल रही पत्रकारिता को उसका असली चेहरा दिखाने का काम भी किया। दर्शकों से संवाद के दौरान नकुल साहनी ने बताया कि मुजफ्फनगर हिंसा दंगा नहीं था बल्कि वह एक नरसंहार था जिसके लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कई महीनों से अपनी तैयारी कर रहा था और इसमें दूसरे प्रदेशों से उसके प्रशिक्षित लोग शामिल थे।
यूसुफ सईद की लम्बी किंतु शोधपूर्ण फिल्म ख़याल दर्पण ने बेहद व्यवस्थित और संतुलित तरीके से पाकिस्तान में शास्त्रीय संगीत की खोज के मायने तलाश किये। इस फिल्म को दर्शकों की भरपूर प्रशंसा मिली। फिल्मोत्सव समिति द्वारा यूसुफ सईद और नकुल साहनी को सम्मानित भी किया गया। दूसरे दिन का समापन हिंदी सिनेमा के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में गुरुदत्त द्वारा निर्देशित हिंदी फीचर फिल्मप्यासा के प्रदर्शन के साथ हुआ।
फिल्मोत्सव के अंतिम दिन पहले सत्र को पूरी तरह बच्चों के लिए रखा गया। बच्चों की रंग-बिरंगी दुनिया के अंतर्गत फिल्मोत्सव में आये बच्चों ने अपनी पसंद के चित्र बनाए जिन्हें आयोजन-स्थल पर प्रदर्शित किया गया। इसके बाद आकाशवाणी के मशहूर समाचार वाचक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक, बच्चों के प्यारे संजय मट्टू अंकल ने अपनी रोचक किस्सागोई से बच्चों और उपस्थित दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। बच्चों को दो बाल फिल्में – लुइस फॉक्स की सामान की कहानी और राजन खोसा की गट्टू भी दिखायी गयीं। अंतिम दिन मध्यांतर के बाद जल-जंगल-जमीन की थीम पर कार्यक्रम के तहत उड़ीसा के असलम द्वारा निर्मित नियामगिरि वर्डिक्ट तथा उत्तराखंड के सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं मदन मोहन चमोली, इंद्रेश मैखुरी और अतुल सती द्वारा निर्मित उत्तराखंड में आपदा : जिम्मा किसका? फिल्मों का प्रदर्शन किया गया।
लखनऊ के अवामी शायर तश्ना आलमी की शायरी और ज़िंदगी पर केंद्रित भगवान स्वरूप कटियार और अवनीश सिंह की फिल्म अतश ने साहित्य और कला के जन-सरोकार को बखूबी रेखांकित किया। इसी के साथ गोरखपुर फिल्म सोसाइटी के मनोज सिंह और अशोक चौधरी द्वारा निर्मित तथा संजय जोशी द्वारा निर्देशित फिल्म सवाल की जरूरत ने भी दर्शकों से सीधा संवाद किया। फिल्मोत्सव का समापन डॉ. निशा सिंह यादव द्वारा सितार वादन की प्रस्तुति तथा दर्शकों द्वारा इस आयोजन की समीक्षा के साथ हुआ।

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